दिन ढले
दिन ढले ही लोट पड़ती है वर्करों की
अनजान सी टोलियाँ नित्य प्रतिदिन
लेकर रोजमर्रा की वस्तुएँ वापस जा
रहे है घर को सोचते हुए सब लोग
कि हो गयी पूरी
आज ड्यूटी सुबह फिर भोर होना है
भोर होने के साथ आज का इतिहास
फिर दोहरा लिया जायेगा पर कल
किसने देखी है
आज मैंने जो कमाया है मेहनत से उसका
भोग कर लू पहलेपी कर दारू और शराब
मस्त हो जाता है रात भर के लिए क्योंकि
दुनियाँ से बेपरवाह पी कर सोया हुआ है
कोन करे
चिंता दुनियाँ दारी की परिवार में भूला है
सब अपने में मस्त है पर क्या मेरी चिंता
किसी को है सुना है अपनी सरकार बदली
अभी -अभी पर कुछ अच्छा होगा पर मैं
बिना पढ़ा लिखा हूँ
मेरे दिन कैसे बहुरेगें कब सोचता हूँ मैं
क्या सरकार मेरे लिए भी कुछ सोचेगी
हो विचारमग्न शून्य में ताकता रहता है
नहीं जाने कुछ कि क्या करना है अब
पर
भरोसा किसी पर तो करना है नहीं तो
दुनियाँ में न रह पाऊँगा इस नयी सरकार
के आते ही चौकन्ने बहुत से विभाग हो गये
आला आफीसर खुद सफाई करने लगे
तकलीफ
तो हुई होगी पर सफाई करने में उनको
लेकिन हराम की भी बहुत पेली मिलकर
सबने है
जो टूटी फूटी झोपड़ी है वही आशियाना मेरा
गगन चुम्बी इमारत देख मन मेरा बहक जाता
पर मेरी हैसियत नहीं है याद यह भी रहता है
जब से भू पर आया हूँ गरीबी से बड़ा दोस्ताना लगता है
पर पापी पेट की भूख क्या क्या नही करवाती
चोरी से लेकर मर्डर करने में संकोच नहीं
आम बात हो गयी गला काटना किसी का
पर सरकार कुछ करेगी आशा है जन मन को
@मधुा@
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दिन ढले ही लोट पड़ती है वर्करों की
अनजान सी टोलियाँ नित्य प्रतिदिन
लेकर रोजमर्रा की वस्तुएँ वापस जा
रहे है घर को सोचते हुए सब लोग
कि हो गयी पूरी
आज ड्यूटी सुबह फिर भोर होना है
भोर होने के साथ आज का इतिहास
फिर दोहरा लिया जायेगा पर कल
किसने देखी है
आज मैंने जो कमाया है मेहनत से उसका
भोग कर लू पहलेपी कर दारू और शराब
मस्त हो जाता है रात भर के लिए क्योंकि
दुनियाँ से बेपरवाह पी कर सोया हुआ है
कोन करे
चिंता दुनियाँ दारी की परिवार में भूला है
सब अपने में मस्त है पर क्या मेरी चिंता
किसी को है सुना है अपनी सरकार बदली
अभी -अभी पर कुछ अच्छा होगा पर मैं
बिना पढ़ा लिखा हूँ
मेरे दिन कैसे बहुरेगें कब सोचता हूँ मैं
क्या सरकार मेरे लिए भी कुछ सोचेगी
हो विचारमग्न शून्य में ताकता रहता है
नहीं जाने कुछ कि क्या करना है अब
पर
भरोसा किसी पर तो करना है नहीं तो
दुनियाँ में न रह पाऊँगा इस नयी सरकार
के आते ही चौकन्ने बहुत से विभाग हो गये
आला आफीसर खुद सफाई करने लगे
तकलीफ
तो हुई होगी पर सफाई करने में उनको
लेकिन हराम की भी बहुत पेली मिलकर
सबने है
जो टूटी फूटी झोपड़ी है वही आशियाना मेरा
गगन चुम्बी इमारत देख मन मेरा बहक जाता
पर मेरी हैसियत नहीं है याद यह भी रहता है
जब से भू पर आया हूँ गरीबी से बड़ा दोस्ताना लगता है
पर पापी पेट की भूख क्या क्या नही करवाती
चोरी से लेकर मर्डर करने में संकोच नहीं
आम बात हो गयी गला काटना किसी का
पर सरकार कुछ करेगी आशा है जन मन को
@मधुा@
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