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जिन्दगी की चाह

 देख मौत का खौफनाक तांडव जीने की चाह फिर से जगी है है मारा मारी आक्सीजन की  हास्पीटल की मनमर्जी चली है ।   खांसी , जुखाम , बुखार से पीड़ीत कोरोना से ग्रस्त कहलाया है पैसा जमा करो तब एन्ट्री मिलेगी  हास्पीटल प्रशासन ने फरमाया है बेचारा क्या करे और क्या न करे समझ न आए साँसे उसकी थमी है । वायरस यह है बहुत ही खतरनाक नित बदले नये नये डायमेन्शन्स पहुँच जाओ एक बार हास्पीटल  पैसे का बिल पर बिल बढाया है अपने पर प्यार उमड़ा है सबका समझ न आए बस उम्मीद बँधी है । पैसे वाले को फर्क नहीं है पड़ता जान बचाने को खूब दाम लगाया  बस मुसीबत बढ़ी मध्यम वर्ग की जिसको हास्पीटल ने झिकाया है हृदयहीन हो जाए जीवन देने वाले निर्धन की दुनियां बस उजडी है ।