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वसंत

ले मौसम अंगराई जब ,जागे मन के भाव मस्त प्रकृति तब धारती, सौम्य सहज शबाव लगता मौसम  सुहाना ,आता जब मधुमास यौवन के रंग रंगी है,आज प्रकृति कुछ खास भत्रई करे मानवी साधना , जब तक सोलह साल  खिलता यौवन पुष्प तब,उस में तब हर हाल आता है ऋतुराज तब , अपने यौवन साथ   प्रेम माह को मनाते , पकड़ हाथ में हाथ कूँजते कोकिल बोल है, अमुवा आये बौर गोरी गाये फाग है , गली गली है शोर मन में  है नव चेतना , हर अंग में उल्लास झूम रहे है युगल अब , मुख पर है मधु हास पहनो पीले बसन को , करिये वाणी  जाप विद्या बुद्धि तब उपजती ,पाओ किरपा आप

उर्मिले त्याग

वसुधा पर उर्मिले का , जानो आप त्याग  तपस्विनी वो जन्म ले ,यही समय की मांग  मान प्रिये का बड़ा हो , आज्ञा लूँ मैं मान भातृ प्रेम पिय रखे जो,बाधक मुझे न जान करते सेवा भातृ की , दिवा रात को जाग सेवक लक्ष्मण सदृश हो,यही समय की मांग देखभाल जो करो तुम , जाओ भाई साथ याद आपकी पास हो , करूँ विनय मैं नाथ साथ राम के जानकी , कैसै भोगूँ भोग सेवा तीनों सासु की , कर धारूँ मैं जोग जाऊँ तेरे मैं साथ नहिं , पर रखती अनुराग प्यार हो परिवार में , यही समय की मांग  पीर हृदय में उठी जो , सुन लो मेरे नाथ भाई साथ तुम चले वन,छोड़ पिया यह हाथ निभा सको कर्त्तव्य तुम, जो भाई के हेतु मुरति दिल में आपकी , वहीं बनाये सेतु निशि दिन करती रही है, पिया का जो ध्यान त्याग अनुपम उर्मिले का , धारिये परम ज्ञान कलयुग ऐसा घोर है , कोन करे परित्याग  पत्नी  उर्मिले सी हो  , यही समय की मांग