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दिल यदि यूँ हो कैद शज़र करता

कैसे तब  इसमें रह बसर करता

निकल पड़ता तोड़ सब भित्तियाँ

मेहबूब अपनी बूँ से असर करता





गुलाब सा सुकुमार है दिल मेरा

भवरा जहाँ डाले बन पिय डेरा

छुपी मधु कोमल कान्त मुस्काँ

तभी उत्सर्ग तेरे लिए प्रिय मेरा





जिन्दगी तो ज़ंग हर  रोज लड़तीं है

कभी फूलों तो कभी शूलों चलती है

है खुश किस्मत वो जो पास से देखे

साज अन्तिम सजा  मौत चूमती  है


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