जहाँ तक संकल्प साथ दे ,सितारे साथ चलते है
अगर हो हौंसलें बुलंद ,तो तारे भी साथ रहते है
अन्दाजा नहीं रहता , कहाँ तलक है ये पानी
समुद्र में जहाँ जाते , पानी खारे साथ पड़ते है
किनारों पे खडा देखा करूँ जो चंचला शोभा
मुस्करा कह उठा देखी तरूणी सी संबला शोभा
घिरे घनघोर काली सी घटा मेघा करे रिमझिम
दुखी प्रियतम कैसे निहारे अब अंचला शोभा
लुटाया जिसे था गवाया मन ने
उठाया दुखों को सताये जन ने
उड़ाया सभी को बयारें चली वो
झलाया पंखा तब करो से तृण ने
रश्मिरथी के रथ चढ़ किरणें आई है
देख उसे ऊषा मुख लाली छाई है
पेड़ों के झुरमुट से झाँक रही है निशि
आराम धरा पर सबको ही लाई है
हम मरे वक्त बेवक्त ही प्यार को
ताकते यूँ रहे हम सदा यार को
किया ही नहीं आज तक मुझ पे वार को
दोष कैसे फिर दूँ न उसके व्यवहार को
हर शमा को जला राह मैं बढ़ा जा रहा
छोड़ के मैं चला आज तेरी तकरार को
भावों में बह कर भावुक न हो जाना
नजरों का तेरी नजरों से न हो आना
खेलने का है जिनको मुकद्दर से शौक
फिर उनका मोहब्बत का न हो ताना
मुझे गर हो गिला कोई कभी हमको सजा देना
मुहब्बत हो गयी केवल हमें अब तो वफा देना
अभी तक तो रही दिल में बसी बेखौफ हो कर के
मुझे कोई न दे कर हथकड़ी हमको मिटा देना
वादियों सी हसीँ अदा वो है
चाहतों की मधुर वफा वो है
वो बने प्यार भी कभी मेरा
टूटती साँस का नफा वो है
अनेको बेघर क्यों हो गये
उनके जेवर क्यों खो गये
आया था कोई जलजला
उनके सारे तेवर ही सो गये
हर बरस चली आती मेरी दुर्गा माँ
कष्ट सभी हर के जाती है दुर्गा माँ
जोड़े हाथ तुझे हर बार पुकारूँ मैं
छोड़ सभी धाम चली आए दुर्गा माँ
पढ़ खतों को याद तेरी बस मुझे तड़पा गयी
लाल नीली चूड़ियाँ खनका मुझे चहका गयी
मैं करूँगा आज भी इन्तजार तेरा हमेशा
पायलें जो पैर पहनी धड़कनें धड़का गयी
आदमी का करता आहार आदमी
हो गया है तभी तो कटार आदमी
आदमी ही करे कत्ल भी इंसान का
इसलिए तो यहाँ से फरार आदमी
बूँदे सागर की न निभा पाती है उच्छवासों को
प्यासी रह कर भी गले लगाती है झंझावातों को
जब रोज हालात बदल रहे है घुटन के मौसम में
कौन तवज्जो देता है इन कोमल अहसासों को
छोटा-बड़ा न कोई ताल-मेल सबसे बढ़ाओ
आये वक्त पर काम जो उसे दिलसे लगाओ
चींटी छोटी प्राणी है पर बडी प्रबल होती है
बातों की संगति बैठा के काम अपने बनाओ
तहजीव से रहना सीख लें उनसे जरा कह दो
इधर - उधर करना छोड़ दे उनसे कड़ा कह दो
झिझोरी हरकतें वो ठीक नहीं जो तू करता है
यहाँ लोकाचार काम आता उनसे सदा कह दो
कोई भी न करें प्यार यहाँ कह दो
कोई भी न बहे आँसू वहाँ कह दो
प्रीत पतंगा दीप से करके जल मरे
कोई प्यार न जले हर जहाँ कह दो
रोज शब्दों में गिरह लगाती हूँ
नव सृजन निज नित रचाती हूँ
दुनियाँ की व्यथा को उड़ेल के
राह रोज सभी को दिखाती हूँ
शहँशाह का दिल बिखरा संगमरमर टुकड़ों में
दिल तड़प कर के निखरा संगमरमर टुकड़ों में
अवशेषों में कालजयी इतिहास पढा लोगों ने
प्यार का बागवाँ निखरा संगमरमर के टुकड़ों में
अगर हो हौंसलें बुलंद ,तो तारे भी साथ रहते है
अन्दाजा नहीं रहता , कहाँ तलक है ये पानी
समुद्र में जहाँ जाते , पानी खारे साथ पड़ते है
किनारों पे खडा देखा करूँ जो चंचला शोभा
मुस्करा कह उठा देखी तरूणी सी संबला शोभा
घिरे घनघोर काली सी घटा मेघा करे रिमझिम
दुखी प्रियतम कैसे निहारे अब अंचला शोभा
लुटाया जिसे था गवाया मन ने
उठाया दुखों को सताये जन ने
उड़ाया सभी को बयारें चली वो
झलाया पंखा तब करो से तृण ने
रश्मिरथी के रथ चढ़ किरणें आई है
देख उसे ऊषा मुख लाली छाई है
पेड़ों के झुरमुट से झाँक रही है निशि
आराम धरा पर सबको ही लाई है
हम मरे वक्त बेवक्त ही प्यार को
ताकते यूँ रहे हम सदा यार को
किया ही नहीं आज तक मुझ पे वार को
दोष कैसे फिर दूँ न उसके व्यवहार को
हर शमा को जला राह मैं बढ़ा जा रहा
छोड़ के मैं चला आज तेरी तकरार को
भावों में बह कर भावुक न हो जाना
नजरों का तेरी नजरों से न हो आना
खेलने का है जिनको मुकद्दर से शौक
फिर उनका मोहब्बत का न हो ताना
मुझे गर हो गिला कोई कभी हमको सजा देना
मुहब्बत हो गयी केवल हमें अब तो वफा देना
अभी तक तो रही दिल में बसी बेखौफ हो कर के
मुझे कोई न दे कर हथकड़ी हमको मिटा देना
वादियों सी हसीँ अदा वो है
चाहतों की मधुर वफा वो है
वो बने प्यार भी कभी मेरा
टूटती साँस का नफा वो है
अनेको बेघर क्यों हो गये
उनके जेवर क्यों खो गये
आया था कोई जलजला
उनके सारे तेवर ही सो गये
हर बरस चली आती मेरी दुर्गा माँ
कष्ट सभी हर के जाती है दुर्गा माँ
जोड़े हाथ तुझे हर बार पुकारूँ मैं
छोड़ सभी धाम चली आए दुर्गा माँ
पढ़ खतों को याद तेरी बस मुझे तड़पा गयी
लाल नीली चूड़ियाँ खनका मुझे चहका गयी
मैं करूँगा आज भी इन्तजार तेरा हमेशा
पायलें जो पैर पहनी धड़कनें धड़का गयी
आदमी का करता आहार आदमी
हो गया है तभी तो कटार आदमी
आदमी ही करे कत्ल भी इंसान का
इसलिए तो यहाँ से फरार आदमी
बूँदे सागर की न निभा पाती है उच्छवासों को
प्यासी रह कर भी गले लगाती है झंझावातों को
जब रोज हालात बदल रहे है घुटन के मौसम में
कौन तवज्जो देता है इन कोमल अहसासों को
छोटा-बड़ा न कोई ताल-मेल सबसे बढ़ाओ
आये वक्त पर काम जो उसे दिलसे लगाओ
चींटी छोटी प्राणी है पर बडी प्रबल होती है
बातों की संगति बैठा के काम अपने बनाओ
तहजीव से रहना सीख लें उनसे जरा कह दो
इधर - उधर करना छोड़ दे उनसे कड़ा कह दो
झिझोरी हरकतें वो ठीक नहीं जो तू करता है
यहाँ लोकाचार काम आता उनसे सदा कह दो
कोई भी न करें प्यार यहाँ कह दो
कोई भी न बहे आँसू वहाँ कह दो
प्रीत पतंगा दीप से करके जल मरे
कोई प्यार न जले हर जहाँ कह दो
रोज शब्दों में गिरह लगाती हूँ
नव सृजन निज नित रचाती हूँ
दुनियाँ की व्यथा को उड़ेल के
राह रोज सभी को दिखाती हूँ
शहँशाह का दिल बिखरा संगमरमर टुकड़ों में
दिल तड़प कर के निखरा संगमरमर टुकड़ों में
अवशेषों में कालजयी इतिहास पढा लोगों ने
प्यार का बागवाँ निखरा संगमरमर के टुकड़ों में
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