नैनों में चितवन
नैनों में चितवन निखरे
कपोलों में उपवन खिले
दामिनि सा स्मित हास्य
बदन पर है दुरीय लाज
विचर कर मन बीथियों में
गुँजित होकर सिसकियों में
प्राणों में भरती आह्लाद
पर पास नहीं क्यूं आज
छन कल्प जैसा लगता है
श्वांस अ्ग्नि बन दहकता है
सूनी सूनी इन आहों में
अब कोई सजे न साज
मानस भूमि बंजर हो रही
प्रीत यह खंजर हो रही
रूदन करती है मेरी रूहें
तो भी मुहब्बत पर है नाज
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