जिसे परखा नहीं तुमने खतों से

गजल

जिसे परखा नहीं तुमने खतों से

कभी आगे न जाओ तुम हदों से

जरा तू ही बता यह वक्त कैसा
निकल पाये न कोई आज घरों से

लुटा है चैन मेरा जानूं न किस पर
पता मैं पूछती उसका  गुलों से

गजल बन कर ढ़ले है जब शब्द मेरे
करूँ तुझको मुहब्बत भर लबों से

भले ही तुम लगाओ रोक हम पर
 मगर  फिर जा मिलेगे चढ़ छतों से

घरों में रह हुए है बोर हम
सूनो मन मीत उड़ कर चल परों से

घुटन से भर गया माहौल सारा 
करे हम बात मिल  दिल की दिलों से

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