दोहे

दोहे

दुखियारे घर घर बसे,कोउ न देखन जाय ।
देखन उनको जाये जो ,कोटिक आशिष पाय ॥

देख जगत की नीति मैं ,खडी -खडी बौराउँ।
हेरफेर की रीति में , कैसे प्रीति निभाउँ ॥

खड़ी बीच बाजार मैं, माँगू सबकी खैर ,
सब अपनी झोली भरे , छोड़े न हेरफेर॥

नदी किनारे मैं खड़ी , खोजूँ प्रभु का छोर ।
मीनें तैरें एक सँग , हेरूँ उनकी ओर ।।

मेघा संदेशा तुम जा ,अलकापुरी कहना ।
तुमरे बिना कैसे हो, यक्ष का अब जीना ॥

देख ऊपर चढता , वर्षा ऋतु का बादल ।
करता है प्रिया दग्ध , यक्ष का अब सीना ॥

रतनगिरि आश्रम में, आवास है अब मेरा ।
विश्राम प्रमाद वश , मुझे जहर पीना ॥

प्रिया न लगता मन , हाल तेरा जैसा मेरा ।
खोया तुझको है मैंने ,कामदेव से छीना ॥


राजनीति बाज बैठो, करत गरीब संहार ।
अापनो वजूद राखो , करत सहज प्रहार॥

राजनीति मधु प्याला, दुष्ट जन करत पान।
धर्म अधर्म कोऊ नाहीं, जो पावै झूठी शान॥

बेरोजगारी अनीति से,राजनीति को नहीं काम।
शोषण अत्याचार भी है, सम्मानीयों के काम ॥

चूल्हा चक्की सब टूटी ,गरीब माँगे सबकी खैर ।
देखत झोपड उजडी , राजनीति करे विदेश सैर॥

देख हालात त्रस्त ग्रस्त,आम जन डरा घबराया ।
बैर द्वेष भूल कर पस्त ,आम जन काम आया ॥

दिल सम्हाल कर राखिए,ना जाये यह टूट।
दिल बिन प्रेम में ना उपजै,प्रेम बिन सब सून॥

तन मन बाबरौ भयो,देख तेरी सरलताई।
आगे आगे क्या होतहै,जै तुझे समझाई॥

फूक फूक पग राखिए,बड़ा विकट काल।
जो ना सभाले आपनो,वही होवे हलाल ॥

देख जगत की कुटिलता,पडा पड़ा थर्राए।
डूब मर चुल्लु जल में,जब काज ना हो पाए॥

रूखी सूखी खाईए,देख ना चूपडी ललचाए।
बाल ना बाका छोड़िए ,सिर ऊपर पानी आए॥

देख चेहरे की मुसकान,कमलिनी भी लजाए।
धीरे धीरे हिय बस आए,कितकू ना जाने पाए॥

दो बूँद प्रेम जल पीवत,जीवन सफल कर जाए ।
प्रेम महिमा गावत अनन्त,जीवन सफल हो जाए॥

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