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मधु की तूलिका से



हद सारी पार कर दी,बिन कुछ जाने कहे।

इल्जाम बहुत लगाये,बिन देखे अजमाए हुए।



महत्व हमारा आँक लिया,मोती की तरह।

एक आशियाना बना लिया,पक्षी की तरह।



चेहरा बदल लिया कुछ ऐसा,बहाना बना कर।

बराबर का हिसाब कर दिया,सपने को दिखा कर।



लगाव अलगाव है सारी , मानव मन की विकृति।

प्रेम से तो नेह बढ़ता है,और घृणा से बढ़ता है द्वेष।



मिला जो मानव जीवन,स्नेह ज्योति जलाना सीख।

मन में पल रहे है जो मैल,उनको भूल धोना सीख।




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