Meri DuniyaN: दिन ढलेदिन ढले ही लोट पड़ती है वर्करों कीअनज...
गजल
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छुपे से मुहब्बत करानी नहीं थी
बहकती जवानी छिपानी नहीं थी
तलक अब न भाऊँ तुझे आज मैं तो
नजर से नजर यूँ लड़ानी नहीं थी
मिरा हो सका तू नहीं आज जब तो
लपट आग की तब लगानी नहीं थी
लगी ये लगन जो मुझे आपसे जो
सजा प्यार की उस सुनानी नहीं थी
मुझे न बना तू सका जब कभी तो
लकीरें मुझे फिर मिलानी नहीं थी
डॉ मधु त्रिवेदी
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