Meri DuniyaN: Meri DuniyaN: जन्म उत्सव के दिन एक एक करके मैं सजा...
Meri DuniyaN: Meri DuniyaN: जन्म उत्सव के दिन एक एक करके मैं सजा...: Meri DuniyaN:
इंसानियत सरेआम नीलाम होती
वो दुकान शायद मुझमें ही है
साँझ पक्षी वापस घर लौटते है
वो घोसला शायद मुझमें ही है
सावन के मास सूने सूने से होते
वो झूले शायद मुझमे ही है
हर कदम पर कमीनापन दिखता
वो इन्साफ शायद मुझमे ही है
राजनीति गलियारा गन्दा दिखता
वो सफेदा शायद मझमें ही है
इंसानियत सरेआम नीलाम होती
वो दुकान शायद मुझमें ही है
साँझ पक्षी वापस घर लौटते है
वो घोसला शायद मुझमें ही है
सावन के मास सूने सूने से होते
वो झूले शायद मुझमे ही है
हर कदम पर कमीनापन दिखता
वो इन्साफ शायद मुझमे ही है
राजनीति गलियारा गन्दा दिखता
वो सफेदा शायद मझमें ही है
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